प्रस्तावना :आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
भारत विविधताओं का देश है। यहाँ अनेक जातियाँ, धर्म, भाषाएँ और संस्कृतियाँ मिलकर एक विशाल सांस्कृतिक ताना-बाना बनाती हैं। इन्हीं में से एक है आदिवासी सामाजिक संस्कृति, जो भारत की मूल और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत मानी जाती है। आदिवासी समाज का जीवन प्रकृति से गहराई से जुड़ा है। उनका रहन-सहन, विश्वास, त्योहार, नृत्य, गीत, कला और भाषा सब कुछ प्रकृति के साथ सामंजस्य को दर्शाता है। आधुनिकता और विकास की दौड़ में जहाँ कई पारंपरिक संस्कृतियाँ विलुप्त हो रही हैं, वहीं आदिवासी संस्कृति आज भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है।
Contents
- 1 2. आदिवासी समाज का परिचय:आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
- 2 3. आदिवासी संस्कृति की विशेषताएँ
- 3 4. भाषा और बोली आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
- 4 5. लोकगीत और नृत्य
- 4.1 6. त्योहार और पर्व :आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
- 4.2 7. कला और शिल्प
- 4.3 8. धार्मिक मान्यताएँ और विश्वास आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
- 4.4 9. सामाजिक
- 4.5 स्त्रियों की स्थिति अपेक्षाकृत स्वतंत्र और सम्मानजनक होती है। वे खेतों के काम, त्योहारों और निर्णयों में सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
- 4.6 10. आजीविका और अर्थव्यवस्था
- 4.7 11. आदिवासी आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम
- 4.8 12. समस्याएँ और चुनौतियाँ
- 4.9 14. निष्कर्ष
2. आदिवासी समाज का परिचय:आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
“आदिवासी” शब्द का अर्थ है – आदिकाल से निवास करने वाले लोग। इन्हें भारत के मूलनिवासी भी कहा जाता है। संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है। भारत में झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, नागालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा और असम जैसे राज्यों में इनकी सबसे अधिक आबादी है।
आदिवासी समाज अपनी भाषा, बोली, पहनावा और परंपराओं के आधार पर बाकी समाज से भिन्न दिखाई देता है। इनकी संख्या करोड़ों में है और ये भारत की सांस्कृतिक विविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
3. आदिवासी संस्कृति की विशेषताएँ
आदिवासी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है प्रकृति-निष्ठ जीवन।
वे जंगल, पहाड़, नदी, तालाब और खेतों को ही अपनी जीवन-रेखा मानते हैं।
उनके गीतों, कहानियों और नृत्यों में धरती, जल, वायु, पेड़-पौधे और पशु-पक्षियों का विशेष स्थान है।
आदिवासी समाज में सामूहिकता की परंपरा गहरी है। गाँव या टोला का हर व्यक्ति दूसरे की खुशी और दुःख में शामिल होता है।
4. भाषा और बोली आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
भारत के आदिवासी समाज में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। संथाली, मुंडारी, हो, गोंडी, भीली, कुड़ुख, खड़िया, कोंकणी, नागपुरी आदि प्रमुख आदिवासी भाषाएँ हैं। इन भाषाओं का साहित्य मौखिक परंपरा पर आधारित है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोकगीतों, कथाओं और कहावतों के रूप में सुरक्षित है।
5. लोकगीत और नृत्य
आदिवासी संस्कृति की आत्मा है उनका लोकसंगीत और नृत्य।
फसल कटाई, वर्षा, त्योहार या विवाह जैसे अवसरों पर सामूहिक नृत्य और गीत गाए जाते हैं।
संथाली का “डाँस सोहराय”, गोंड जनजाति का “रीना नृत्य”, भील समाज का “गरबा”, नागा जनजाति का “वार नृत्य” विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
ढोल, मादल, नगाड़ा, बाँसुरी, टुंबी जैसे वाद्य यंत्र इनकी संगीत परंपरा का हिस्सा हैं।
6. त्योहार और पर्व :आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
आदिवासी समाज का त्योहार सीधा प्रकृति और कृषि से जुड़ा होता है।
सोहराय – फसल कटाई और पशुधन को समर्पित पर्व।
करमा – वृक्षों और प्रकृति की पूजा का पर्व।
सरहुल – वसंत और फूलों का त्योहार।
माघ परब – नये वर्ष और नये मौसम की शुरुआत का पर्व।
इन त्योहारों में लोग रंग-बिरंगे वस्त्र पहनकर सामूहिक नृत्य करते हैं, गीत गाते हैं और पारंपरिक भोजन बनाते हैं।
7. कला और शिल्प
आदिवासी समाज की कला अत्यंत समृद्ध है।
दीवारों और फर्श पर चित्रांकन (पिथोरा, भील पेंटिंग, वारली कला) किया जाता है।
लकड़ी, बाँस और मिट्टी से खिलौने और घरेलू सामान बनाए जाते हैं।
स्त्रियाँ सुंदर आभूषण और पारंपरिक परिधान पहनती हैं जिनमें चाँदी और मोतियों का प्रयोग अधिक होता है।
8. धार्मिक मान्यताएँ और विश्वास आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत
आदिवासी समाज प्रकृति-पूजक है। वे सूर्य, चंद्रमा, नदी, पहाड़ और वृक्षों को देवता मानकर पूजा करते हैं।
संथाल समाज “मरांग बुरु” को सर्वोच्च देवता मानता है।
गोंड समाज “फेन पेन” नामक देवताओं की पूजा करता है।
इनके धार्मिक अनुष्ठान नृत्य, गीत और बलि प्रणाली पर आधारित होते हैं।
9. सामाजिक
आदिवासी समाज सामूहिकता और समानता पर आधारित है।
यहाँ जाति-पांति का भेदभाव नहीं है।
गाँव का नेतृत्व “मुखिया” या “पाहन” करता है।
स्त्रियों की स्थिति अपेक्षाकृत स्वतंत्र और सम्मानजनक होती है। वे खेतों के काम, त्योहारों और निर्णयों में सक्रिय भूमिका निभाती हैं।
10. आजीविका और अर्थव्यवस्था
आदिवासी समाज मुख्य रूप से खेती, शिकार, मछली पकड़ना और वनोपज पर निर्भर है।
धान, मक्का, कोदो, ज्वार-बाजरा जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
शहद, महुआ, लाख, तेंदू पत्ता, बाँस और लकड़ी इनके जीवन-यापन का आधार हैं।
धीरे-धीरे आधुनिक शिक्षा और व्यवसायों की ओर भी इनका रुझान बढ़ रहा है।
11. आदिवासी आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम
आदिवासी समाज ने भारत की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
बिरसा मुंडा का उलगुलान (1899-1900) आदिवासी अस्मिता और स्वतंत्रता का प्रतीक है।
तिलका मांझी, सिद्धू-कान्हू, अल्लूरी सीताराम राजू, रानी दुर्गावती जैसे नायकों ने अंग्रेज़ों और जमींदारों के खिलाफ संघर्ष किया।
12. समस्याएँ और चुनौतियाँ
आज आदिवासी समाज अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है –
1. जंगल और जमीन से बेदखली
2. गरीबी और बेरोजगारी
3. शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
4. भाषा और संस्कृति का ह्रास
5. नशाखोरी और कुपोषण
6. खनन और औद्योगिक परियोजनाओं से विस्थापन
13. संरक्षण और सरकारी प्रयास
भारत सरकार ने अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष योजनाएँ बनाई हैं।
शिक्षा हेतु छात्रवृत्ति
वनाधिकार कानून (2006)
आदिवासी विकास निगम और ट्राइफेड (TRIFED)
जनजातीय विश्वविद्यालयों की स्थापना
इसके अलावा स्वयंसेवी संगठन और शोध संस्थान भी आदिवासी कला और संस्कृति को संरक्षित करने में लगे हैं।
14. निष्कर्ष
आदिवासी सामाजिक संस्कृति भारत की आत्मा है। यह संस्कृति हमें प्रकृति से जुड़ना और सामूहिकता में जीना सिखाती है। आदिवासी समाज का योगदान केवल इतिहास तक सीमित नहीं है, बल्कि आज भी वे भारत की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखे हुए हैं। आधुनिकता के दौर में हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी संस्कृति, भाषा और कला को संरक्षित करें ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस अनमोल धरोहर से वंचित न रहें।